शिक्षण एक सामाजिक दृष्टिकोण है जबकि सीखना एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। शिक्षण बिना अध्येताओं के संभव नहीं है जबकि सीखना अपने व्यक्तिगत अनुभव से भी हो सकता है। शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्न चरणों की जरूरत होती है।
योजना (Preparation)
किसी भी कार्य को संपादित करने के लिए योजना की जरूरत होती है। योजना कार्य को गति प्रदान करती है। शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया में शिक्षक अपनी क्षमता के अनुकूल, छात्रों की संख्या, विषय वस्तु के अनुसार शिक्षण के लिए योजना तैयार करते हैं और शिक्षण कार्य को संपादित करते हैं। जब शिक्षक छात्रों को पढ़ने के लिए अपने हर दृष्टिकोण से अपना अच्छा सही ज्ञान के संचार के लिए योजना बनाते हैं तो शिक्षण बोध्यगम सुगम हो जाता है बिना योजना के कोई भी कार्य संपादन नहीं की जा सकती है।
तैयारी (Planning)
शिक्षण प्रशिक्षण का आयोजन किसी विशेष स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय में होती है जहां शिक्षक नई संभावनाओं की तलाश में आए छात्र छात्राओं को चरणबद्ध तरीके से विषय वस्तु का ज्ञान देते हैं। जब किसी कार्य को संपादित करने के लिए योजना बनाते हैं तो उस समय अपने योजना अनुसार तैयारी भी करनी होती है। शिक्षकों को जो विषय वस्तु पर पढ़ानी होती है उस विषय वस्तु अच्छी तरह से तैयार करनी होती हैं और उस विषय वस्तु को अधिक से अधिक रुचिकर बनाने का प्रयास किया जाता है ताकि अध्येता उस विषय वस्तु को अच्छे ढंग से हृदयागम्य करें। शिक्षण प्रक्रिया में तैयारी का अर्थ किसी विषय वस्तु को कैसे अध्येताओं के लिए सुगम बनाया जाए ताकि विषय वस्तु रुचिकर हो।शिक्षण विधि में शिक्षण सहायक उपकरण सामग्री का प्रयोग तथा उपयोग आदि पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
प्रस्तुतीकरण (Presentation)
तैयारी के पश्चात किसी विषय वस्तु का अच्छे से प्रदर्शन करना आवश्यक होता है। किसी विषय वस्तु का प्रदर्शन ऐसा होना चाहिए ताकि उसे विद्यार्थी पूर्णता से ग्रहण कर सके और प्रशिक्षु संतुष्ट हो सके। शिक्षण प्रक्रिया में विषय वस्तु की प्रस्तुतिकरण महत्वपूर्ण चरण होते हैं जिसके माध्यम से कक्षा में शांतिपूर्वक विद्यार्थी विषय को समझ पाता है। शिक्षकों के द्वारा अपनी योग्यता और क्षमता के अनुकूल अच्छे ढंग से विषय वस्तु को प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है ताकि अध्येता उसे ग्रहण कर सके। अध्येता अपनी क्षमता के अनुकूल ग्रहण या समझने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार प्रस्तुतीकरण शिक्षण का एक महत्वपूर्ण चरण हैं।
तुलना (Comparison)
तुलना भी शिक्षण का महत्वपूर्ण विशेषता है जिसके माध्यम से हमें अपनी गलती को सुधारने का मौका मिलता है। शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया में तुलना कर प्रथम कक्षा प्रदर्शन से दूसरा कक्षा प्रदर्शन को बेहतर तथा सारगर्भित सुसंगत बनाया जा सकता है। इस प्रकार तुलनात्मक अध्ययन अध्यापन से अध्येताओं में जागृति आती है और वे अच्छे से ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
समान्यनिकरण (Generalisation)
शिक्षण की प्रक्रिया में एक कक्षा प्रदर्शन का दूसरे कक्षा प्रदर्शन का तुलना कर समान्यनिकरण किया जा सकता है जो शिक्षण को अधिक आकर्षक बेहतर परिणाम दे सकता है। समान्यनिकरण शिक्षण का महत्वपूर्ण चरण होती है जिसमें कक्षा प्रदर्शन परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन कर शिक्षण प्रक्रिया को और बेहतर परिणाम देने वाला बनाया जा सकता है। शिक्षण प्रक्रिया में सामान्यनिकरण बेहतर परिणाम का द्योतक है। शिक्षण कार्य नियम संगत होना चाहिए।
अनुप्रयोग (Application)
शिक्षण का मुख्य उद्देश्य समाज को विकासशील बनाना है। शैक्षिक वातावरण समाज में विकसित करने में शिक्षकों का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नित्य नए सूचना तथा ज्ञान का सृजन कर देश और समाज के सर्वांगीण विकास करना है। व्यक्ति में नैतिक गुण को विकसित किया जाता है। इसलिए शिक्षण में शिक्षक अपने योजना अनुसार बेहतर नियमतः कक्षा प्रदर्शन कर नित्य प्रतिदिन नये अनुप्रयोग करना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। क्योंकि किसी नियम का समान्यनिकरण का अनुप्रयोग से ही विकास की गति को जारी रखा जा सकता है इसलिए शिक्षण प्रक्रिया में नित्य नये अनुप्रयोग करना चाहिए।