परंपरागत संचार माध्यम (Conventional Communication Media)

Conventional Communication Media (परंपरागत संचार माध्यम) वैदिक युग में लोगों के बीच संपन्न होने वाले वाद-विवाद संचार का प्रमुख साधन हुआ करता था। धार्मिक उत्सव, मेले, त्यौहार, पर्व, कथा वाचन आदि संचार के प्रमुख साधन के रूप में उपयोग होता रहा है। सामाजिक दायित्व और एकता की स्थापना में परंपरागत संचार माध्यम जैसे वार्तालाप, कथा वाचन, लोक नाटक, वस्तु कला, मूर्तिकला, रासलीला आदि की प्रमुख भूमिका रही है।

परंपरागत संचार माध्यम से तात्पर्य है जो सामाजिक स्तर पर पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होते आए हैं, जिसकी प्रासंगिकता आज भी है।

ग्रामीण हाट बाजार भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है, जहां लोग एक स्थान पर इकट्ठे होते हैं और विभिन्न वस्त्र, सामग्री, उपकरण, खाद्य पदार्थ और अन्य वस्तुएं खरीदते हैं। इसके अलावा हाट में मनोरंजन कार्यक्रम और कथाएं आयोजित की जाती हैं जो संचार को बढ़ावा देती हैं।

कथावाचन एक प्रसिद्ध परंपरागत संचार माध्यम है जो कहानियों, लोककथाओं, कविताओं, और अन्य साहित्यिक कार्यों को सुनाने और साझा करने के लिए उपयोग होता है। इसमें कथाकार अपनी कथा को भाषण या प्रवचन के माध्यम से दर्शाता है और श्रोताओं को मनोहारी कहानी सुनाने का आनंद मिलता है।

लोक नाटक और नृत्य भी परंपरागत संचार माध्यम के रूप में उपयोग होते हैं। इसमें कलाकार एक जीवंत प्रदर्शन के माध्यम से कथा को दर्शाते हैं और दर्शक एकाग्रचित्त होकर कला का आनन्द लेते हैं। नाटक और नृत्य के माध्यम से विभिन्न भावनाओं, कथाओं, और सामाजिक संदेशों को साझा किया जाता है।

परंपरागत संचार माध्यम हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराओं के अनुसार होते हैं, जिनका उपयोग संचार और संवाद के लिए किया जाता है। इसमें विशेष रूप से प्रशंसा, जानकारी, समाचार और कथाएं साझा की जाती हैं।

परंपरागत संचार माध्यमों के साथ-साथ आधुनिक संचार के रूप में तकनीकी और डिजिटल प्रकाशन भी विकास हुआ है। डिजिटल प्रकाशन के रूप में लोग अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि की जानकारी कंप्यूटर या इंटरनेट के माध्यम से साझा करते हैं।

वर्तमान में परंपरागत संचार माध्यमों की अपेक्षा आधुनिक संचार तकनीकों का विकास तेजी से हुआ है और आधुनिक संचार माध्यमों का प्रयोग अधिकारिक और गैर-अधिकारिक स्तर पर बढ़ा है।

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