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Research Aptitude

शोध परिकल्पना का निर्माण (Formulation of Research Hypothesis)

परिकल्पना : उद्देश्य, महत्व एवं प्रकार

परिकल्पना एक मानवीय चिंतन है जो वैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित होता है। बिना मानवीय चिंतन के परिकल्पना की उत्पत्ति नहीं हो सकती। परिकल्पना शोधकर्ता को एक नई दिशा प्रदान करती है। परिकल्पना के बिना शोधकर्ता अपने अध्ययन में एक कदम आगे नहीं बढ़ सकता है। परिकल्पना के आधार पर किसी भी शोध समस्या के उत्पन्न होने के कारण तथा उसके मुख्य तथ्यों की जानकारी मिल पाती है। इस प्रकार परिकल्पना शोध अध्ययन का पूर्व नियोजित मार्ग या पथ है जो शोधकर्ता को दिशा प्रदान करता है। परिकल्पना एक ऐसा कार्यवाहक तार्किक वाक्य, पूर्व नियोजित विचार, पूर्वानुमान या धारणा है जिसे शोधकर्ता स्वयं शोध विषय वस्तु की प्रकृति के आधार पर शोध प्रारंभ करने से पहले ही निर्मित करता है। शोधकर्ता अपने शोध के दौरान इस परिकल्पना की जांच करता है। यह परिकल्पना सत्य या असत्य हो सकती है। यदि शोध विषय में संकलित एवं विश्लेषक तथ्यों के आधार पर परिकल्पना प्रमाणित हो जाती है तो मान लिया जाता है कि शोध समस्या भी इन्हीं कारणों या चरों की उपज है। शोध समस्या के निर्माण में परिकल्पना से संबंधित कारणों की खोज करना /अध्ययन करना तथा कारणों का विश्लेषण कर उसकी सत्यता या असत्यता की जांच करते हुए शोध समस्या का निर्धारण किया जाता हैं।

  • शोध प्रक्रिया को सही दिशा प्रदान करने के लिए शोध परिकल्पना का प्रतिपादन करना अत्यंत आवश्यक है। शोध में आंकड़े के संकलन और विश्लेषण के पूर्व शोध के परिणामों का अनुमान करना परिकल्पना है। यह परिकल्पना पूर्व निर्धारित सिद्धांतों अथवा आनुभविक विचारों के आधार पर शोध परिकल्पना का निर्माण किया जाता है। यह एक बुद्धिमत्तापूर्ण भविष्यवाणी है जो  शोध-निष्कर्ष निकालने में सहायक होता है।
  • परिकल्पना शोध अध्ययन की सही और निश्चित दिशा का निर्धारण कर शोध अध्ययन को सीमित करने में सहायक, आंकड़े संकलन में उपयोगी, शोध-निष्कर्ष निकालने में सहायक सिद्ध होता है।
  • परिकल्पना का निर्माण करते समय विशेष रूप से निर्धारित उद्देश्य एवं उनकी प्राप्ति के साधनों पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि परिकल्पना का निर्माण और उसकी जांच की जा सके।
  • शोध परिकल्पना को सरल (Simple), विधि उन्मुख (Method Oriented), वैज्ञानिक (Scientific), वस्तुनिष्ठ (Objectivity), सत्यपनीय (Verifiable) तथा तार्किक परीक्षण योग्य (Logically Testable) होनी चाहिए जो शोध समस्या का स्पष्ट उत्तर दे सके। यह परिकल्पना की मुख्य विशेषता है।

परिकल्पना का न कोई रूप है और ना ही कोई सर्वमान्य वर्गीकरण। किंतु वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित प्रकल्पना निम्न प्रकार होते हैं।

  • शून्य परिकल्पना (Null Hypothesis) ‘Null’ जर्मन जर्मन भाषा के शब्द है जिसका अर्थ शुन्य होता है। इसे शून्य परिकल्पना या अप्रमाणित या अशुद्ध परिकल्पना कहते हैं। नल- परिकल्पना अर्थात शून्य परिकल्पना वह परिकल्पना है जिसमें दो चराें में संबंध ज्ञात करने पर पता चलता है कि उसमें कोई अंतर नहीं है। अर्थात ऐसी परिकल्पना जिसके अध्ययन करने से कोई नया सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं हो सकता है। यह दिखावा मात्र होता है।
  • जटिल/उपयोगी परिकल्पना (Complex/Useful Hypothesis) उपयोगी परिकल्पना शोध अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस परिकल्पना को आधार मानकर सिद्धांत निर्माण एवं सामान्यीकरण किया जा सकता है ऐसी परिकल्पना की जांच एवं विश्लेषण की जा सकती है एवं उसकी सत्यता या असत्यता की जांच कर प्रमाणित या अप्रमाणित सिद्ध किया जा सकता है।

परिकल्पना की जांच अनुमान पर आधारित होता है जब तक अनुभवाश्रित अनुमानित परिकल्पना प्रमाणित नहीं हो जाती है तब तक उसे विज्ञान न स्वीकृत करती है और न ही जनमत उसको मान्यताएं प्रदान करती है। इसलिए परिकल्पना की जांच या परीक्षण करना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य होता है। ताकि वह सिद्धांत का रूप ले सके। शून्य- परिकल्पना (Null-Hypothesis) मूल्यहीन होती है इसकी परीक्षण की आवश्यकता नहीं है और ना ही उपयोगी। केवल उपयोगी परिकल्पना की जांच की जाती है। परीक्षित परिकल्पनाऐं सिद्धांत या नियम को जन्म देती है। परिकल्पना के परिक्षण के दो पद्धतियां मुख्य हैं – पैरामेट्रिक टेस्ट (Parametric test)  और नॉन-पैरामेट्रिक टेस्ट (Non-Parametric test)

  • पैरामेट्रिक टेस्ट के अंतर्गत अनोवा (ANOVA), टी-टेस्ट (T-test), जेड-टेस्ट (Z-test) आते हैं।
  • नॉन-पैरामेट्रिक टेस्ट के अंतर्गत चाई-स्क्वायर टेस्ट (Chi-Squire test), Kruskel Wall’s, Mann-Whitney, आदि आते हैं।