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शोध प्रारूप : आवश्यकता, विशेषताएं एवं उसके प्रकार

शोध प्रारूप 

प्रस्तुत इस आलेख में शोध प्रारूप क्या है? उसकी आवश्यकता के साथ उसकी विशेषताओं और शोध प्रारूप के प्रकार को भी विस्तार से वर्णित किया गया है। शोध के सभी चरणों में तारतम्य के साथ शोध कार्य समय सीमा के अंतर्गत पूर्ण हो, इसके लिए शोध प्रारूप की आवश्यकता होती है। शोध के लिए शोध प्रारूप अत्यंत ही सहायक है। अतः इस आलेख को क्रमबद्धता के साथ अवश्य पढ़ें।

शोध प्रारूप क्या है?

प्रत्येक शोध अध्ययन के कुछ निश्चित उद्देश्य होता है और उन उद्देश्य की पूर्ति योजनाबद्ध रूप से शोध कार्य को आरंभ करके ही की जा सकती है। शोधकर्ता को शोध अध्ययन के लिए एक ऐसे प्रारूप का चयन करना होता है जो उसके शोध अध्ययन में सहायक सिद्ध हो सके। शोध एक जटिल प्रक्रिया के साथ एक महत्वपूर्ण योजना भी है। शोध समस्या के चयन के पश्चात शोध प्रारूप तैयार करना होता है ताकि शोध समस्या के समाधान में कोई बाधा उत्पन्न न हो। शोध प्रारूप शोध कार्य करने के पूर्व निर्धारित एक ऐसी योजनाबद्ध रूपरेखा है जो कुछ विशिष्ट और निश्चित उद्देश्य के संबंध में शोध अध्ययन से संबंधित विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट करती है। शोध प्रारूप एक वैज्ञानिक अध्ययन का खाका है। इसमें शोध करने के तरीके, उपकरण और तकनीक का विवरण होता है। एक शोधकर्ता आमतौर पर शोध की शुरुआत में शोध के तरीकों और तकनीकों को चुनाव करता है। जिस दस्तावेज में किसी शोधकार्य परियोजना की तकनीक, विधियों और आवश्यक विवरणों के बारे में जानकारी होती है, उसे शोध प्रारूप कहा जाता है।

कॉहन ने ‘द डिजाइन ऑफ रिसर्च’ पुस्तक में परिभाषित करते हुए लिखा है कि शोध प्रारूप एक प्रश्न का उत्तर जानने, परिस्थिति का वर्णन करने या एक परिकल्पना का निरीक्षण करने से संबंधित है।

शोध प्रारूप के मुख्य तत्व

शोध प्रारूप के मुख्य तत्व के रुप में शोध कार्य के उल्लेखित महत्त्वपूर्ण बिन्दु को शामिल किया जाता है, ताकि शोध कार्य निर्विघ्न रुप से निर्धारित समयावधि में पूर्ण हो सके। शोध प्रारूप में निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया जाना चाहिए –

• शोध शीर्षक का निर्धारण अर्थात् शोध का विषय क्या है?

शोध के उद्देश्य या लक्ष्य क्या है?

शोध की विधियाँ अर्थात् आंकड़े संग्रहण की विधियाँ एवं तकनीक के क्या है?

• आंकड़े विश्लेषण की तकनीक कौन सी अपनाई जा रही है?

• शोध की चुनौतियां एवं अध्ययन के लिए आवश्यक शर्तें क्या है?

• शोध अध्ययन की अवधि एवं शोध परिणाम की संक्षिप्त जानकारी क्या है?

शोध प्रारूप की आवश्यकता

शोध प्रारूप एक सुव्यवस्थित योजना है, जो शोधकर्ता को न केवल सही दिशा में मार्गदर्शन के लिए प्रेरित करती है, अपितु शोधकर्ता सही मार्ग का अनुसरण करते हुए, निर्धारित समय सीमा में शोध कार्य पूरा करे, यह भी सुनिश्चित करती है। शोध प्रारूप आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य होता है। शोधकार्य में शोध प्रारूप की क्या आवश्यकता है?

• शोध को दिशा प्रदान करता है।

परिकल्पना के निर्माण एवं परीक्षण में सहायक होता है।

• दक्षता और विश्वसनीयता बढ़ाता है।

• पूर्वाग्रहों और त्रुटियों को दूर करता है।

• समय की बर्बादी को कम करता है।

शोध प्रारूप से शोधकर्ता को एक निश्चित दिशा ही नहीं मिलती, बल्कि इससे शोध अध्ययन भी केंद्रित होता है। यह शोध के दौरान किए जाने वाले कार्यों की योजना या रणनीति होती है, जो शोधार्थी को अपने शोध के प्रति सजग और शोध कार्य को सुगम बनाता है। यह शोध और विश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाली समस्या की पहचान करने और उसका समाधान करने में मदद करता है। शोध कार्य में प्रतिचयन का चयन, आंकड़ा संग्रहण तकनीक, आंकड़ा विश्लेषण तकनीक का निर्धारण, समय-सारणी एवं शोध प्रतिवेदन लिखने की प्रक्रिया का पूर्ण विवरण शोध प्रारूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसलिए शोध प्रारूप हमेशा शोध समस्या के प्रकृति, उद्देश्य एवं परिकल्पना के अनुसार ही तैयार की जानी होती है, जिससे शोध कार्य में गति मिलती है।

शोध प्रारूप की विशेषताएं

शोध प्रारूप के मुख्य उद्देश्य शोध समस्या की पहचान करना, शोध समस्या कथन से सम्बन्धित साहित्य की समीक्षा करना, परिकल्पना निर्माण करना, आंकड़े के स्रोतों का वर्णन करना साथ ही साथ आंकड़े की व्याख्या एवं विश्लेषण कर शोध कार्य समय से पूरा करना होता है। प्रत्येक शोध के प्रारंभ में, एक शोधकर्ता को कुछ धारणाएँ बनाने की आवश्यकता होती है, जिनका शोध के दौरान परीक्षण किया जाता है। एक सही शोध प्रारूप यह सुनिश्चित करता है कि धारणाएं पूर्वाग्रह से मुक्त और तटस्थ है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि शोध के दौरान एकत्र किए गए आंकड़े, शोध की समस्या एवं उद्देश्य की धारणाओं पर आधारित है। अतः शोध प्रारूप की निम्न विशेषताएं होता है।

• शोध प्रारूप विषयनिष्ठ एवं अधिक से अधिक विश्वसनीय होना चाहिए।

• यह प्रभावशाली, लचीला एवं मितव्ययी होना चाहिए।

• शोधकर्ता का मार्गदर्शन करना चाहिए।

• शोध के उद्देश्यों को पूर्ण करने में सहायक होना चाहिए।

• जटिल अनुसंधान/शोध को सरल बनाने वाले होना चाहिए।

• यह सामान्य तथा वैध होना चाहिए।

जो भी शोध प्रारूप का चयन किया जाए उसे मापक उपकरणों के उपयोग की अनुमति देने वाला होना चाहिए अर्थात वह पूर्ण रूप से विषयनिष्ठ हो। विश्वसनीयता का आशय मापन में सुसंगति से है। इसके लिए उत्तरदाता से आशा की जाती है कि वह पूछे गए प्रश्नों का उत्तर सही-सही प्रदान करेंगे। जो मापन उपकरण लिया गया हो, वह वैध होना चाहिए एवं शोध के उद्देश्यों को पूरा करने में सहायक हो। यह यह शोध कार्य को सरल बनाने के साथ-साथ समय एवं धन की बचत में सहायक हो। अर्थात शोध प्रारूप के माध्यम से शोधकर्ता ससमय अपने सही परिणाम और निष्कर्ष पर पहुंच सके।

शोध प्रारूप के प्रकार

शोध प्रारूप का प्रकार शोध अध्ययन की प्रकृति और उद्देश्य पर निर्भर करता है। यह शोध कार्य को एक निश्चित दिशा प्रदान कर शोधकर्ता को निर्धारित समय सीमा के अंतर्गत सही परिणाम और निष्कर्ष तक पहुंचाता है। शोध की प्रकृति के अनुरुप शोध अध्ययन समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रायोगिक तथा अन्य में प्रयुक्त होने वाले प्रारूप निम्न प्रकार के हो सकते हैं।

वर्णनात्मक शोध प्रारूप

निदानात्मक शोध प्रारूप

अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप

प्रयोगात्मक शोध प्रारूप

वर्णनात्मक शोध प्रारूप

वर्णनात्मक शोध प्रारूप के अंतर्गत हम लोग किसी व्यक्ति, समुदाय के संपूर्ण या आंशिक जीवन का अध्ययन करते हैं। इस शोध प्रारूप का मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष या विशिष्ट समुदाय की परिस्थिति या घटना का वर्णन करना होता है। इसमें किसी समूह या स्थितियों की विशेषता का वर्णन किया जाता है। यह शोध प्रारूप, व्यक्तिगत प्रलेख या साक्षात्कार या दैनिक अवलोकन पर आधारित होता है। व्यक्तिगत प्रलेख, जिसमें एक व्यक्ति के संपूर्ण जीवन या उसका किसी विशिष्ट घटना या प्रकरण से संबंधित होता है। यह व्यक्तिगत प्रलेख उसकी आत्मवृत्त डायरी, पत्र आदि हो सकते हैं। यहां शोधकर्ता उस व्यक्तिगत प्रलेखों को ध्यान में रखते हुए अध्ययन कर वर्णनात्मक शोध प्रारूप तैयार करते हैं। वर्णनात्मक शोध प्रारूप का आधार प्रश्नावली, साक्षात्कार और अवलोकन होता है। शोधकर्ता उत्तरदाताओं से साक्षात्कार कर शोध प्रारूप तैयार करते हैं। संबंधित आंकड़े का संकलन और विश्लेषण कर वर्णनात्मक शोध अभिकल्पन तैयार कर परिकल्पना का निर्माण और सामान्यीकरण कर शोध कार्य प्रस्तुत करते हैं।

निदानात्मक शोध प्रारूप

निदानात्मक शोध प्रारूप किसी विशिष्ट समस्या के निदान से संबंधित होता है। जब शोधकर्ता किसी शोध समस्या के वास्तविक कारणों को जानने तथा उसे दूर करने के उद्देश्य से शोध प्रारूप का निर्माण करता है, तब ऐसे प्रारूप को निदानात्मक शोध प्रारूप कहते हैं। ऐसे प्रारूप का उद्देश्य किसी समस्या विशेष के हल के लिए उत्तर ढूंढना होता है। यह प्रारूप शोध अध्ययन के दौरान आए कारणों में पर्याप्त और महत्त्व के कारणों को अन्य कारणों से पृथक कर उसका गहन अध्ययन करके उत्पन्न हुई समस्या का समाधान खोजने में सहायक होता है। यह शोधकर्ता को एक घटना के होने की आवृत्ति या विशिष्ट क्षेत्र में आने वाली समस्याओं के समाधान की रणनीति प्रदान करती है। इस तरह के प्रारुप में शोध समस्या की पहचान, समस्या में प्रमुख कारणों की खोज, संभावित उपायों का प्रतिपादन एवं संभावित समाधान की अनुशंसा के साथ आंकड़े संग्रहण की विधियां में साक्षात्कार, दैनिक अवलोकन, औपचारिक मानकीकृत परीक्षण या अनौपचारिक परीक्षण आदि के माध्यम से निदानात्मक शोध प्रारूप तैयार कर शोध कार्य को अंतिम परिणाम प्रदान करते हैं।

अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप

अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप का उद्देश्य शोध समस्याओं और परिकल्पनाओं के निर्धारण में सहायता करना है। इस शोध प्रारूप के माध्यम से नवीन तथ्यों की खोज की जाती है। यह व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक होते हैं। इस शोध प्रारूप के माध्यम से नए विचारों और अंतर्दृष्टि खोजने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। जब शोधकर्ता का उद्देश्य किसी सामाजिक घटना के उत्तरदायी कारणों की खोज करना होता है, तब अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप का उपयोग कर विषय-वस्तु का अध्ययन किया जाता है। किसी घटना के उत्तरदायी कारणों की खोज करके उसे प्रकट करने के लिए जिस क्रमबद्ध योजना का उपयोग किया जाता है, उसे अन्वेषणात्मक प्रारूप कहा जाता है। शोध प्रारूप का अच्छी तरह से उपयोग करने के लिए साहित्य समीक्षा, अनुभव सर्वेक्षण, सूचनादाताओं का चयन और अंतर्दृष्टि प्रेरक घटनाओं का विश्लेषण महत्व रखती है। शोध के दौरान कुछ घटक सामने आते हैं, जिसका विश्लेषण के पश्चात प्राप्त जानकारी शोध के अंतर्दृष्टि प्रेरित करती है। शोध विषय वस्तु के महत्व पर प्रकाश डालना, विषय वस्तु पर शोधकर्ता का ध्यान आकर्षित करना, पूर्व निर्धारित परिकल्पना का परीक्षण करना, शोध की महत्वपूर्ण समस्याओं की ओर शोधकर्ता का ध्यान केंद्रित करना, ज्ञान के क्षेत्र को बढ़ाना तथा शोध अध्ययन का क्षेत्र विकसित करने में सहायक एवं अध्ययन की नवीन संभावनाओं को विकसित करना अन्वेषणात्मक शोध प्रारूप का महत्वपूर्ण कार्य होता है।

प्रयोगात्मक शोध प्रारूप

प्रयोगात्मक शोध प्रारूप प्रयोग की अवधारणा पर आधारित होता है। मूलतः प्रयोग पर आधारित प्रयोगात्मक शोध प्रारूप तैयार कर शोधकर्ता चरों पर नियंत्रित करते हुए अपने इच्छानुसार उन्हें घटा बढ़ा सकता है। इसके अंतर्गत शोधकर्ता स्वतंत्र चरों के घटाने या बढ़ाने के द्वारा आश्रित चरों में आए परिवर्तन का मापन करते हुए नियंत्रित चरों पर प्रभाव को देखा जा सकता है। प्रयोगात्मक शोध प्रारूप के तीन मूलभूत रुप हैं जिसके आधार पर शोधकर्ता के द्वारा प्रयोगात्मक शोध कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।

पश्चात परीक्षणात्मक शोध प्रारूप

 पश्चात परीक्षण वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सबसे पहले एक समान गुण वाले दो समूह का चुनाव किया जाता है और इसमें से किसी एक समूह को नियंत्रित समूह तथा दूसरे को विशिष्ट परीक्षणात्मक समूह के रूप में मान लिया जाता है। इसके पश्चात परीक्षणात्मक समूह में किसी एक घटक द्वारा परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है जबकि नियंत्रित समूह को उस घटक के प्रभाव से अलग रखा जाता है। फिर इन दोनों समूहों में आने वाले परिवर्तन को मापा जाता है। दोनों समूहों के घटकों में परिवर्तन के आधार पर का परिणाम निर्धारित किया जाता है। पश्चात परीक्षणात्मक शोध शोधकर्ता सुव्यवस्थित तरीके से घटकों में परिवर्तन के द्वारा निश्चित होता है।

पूर्व-पश्चात परीक्षण शोध प्रारूप

इस प्रारूप में परीक्षणात्मक समूह हमेशा विद्यमान होता है। परंतु नियंत्रित समूह कभी-कभी होता है तो कभी-कभी दोनों या अधिक अधिकतम समूह भी होते हैं। एक समूह द्वारा पूर्व और पश्चात अध्ययन अर्थात ऐसे अध्ययन में नियंत्रित समूह नहीं होता है। एक ही समूह में प्रयोग के पहले और पश्चात में अंतर को परीक्षणात्मक चर का प्रभाव मापन किया जाता है। दूसरे में, एक नियंत्रित समूह वाला पूर्व और पश्चात अध्ययन अर्थात इसमें परीक्षणात्मक एवं नियंत्रित दोनों प्रकार के समूह बनाए जाते हैं और दोनों में पूर्व और पश्चात की तुलना करके मापन किया जाता है। पूर्व-पश्चात परीक्षण दोनों समूह के मापन का अंतर परीक्षणात्मक चर का प्रभाव पर अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला जाता है।

ऐतिहासिक तथ्य परीक्षण शोध प्रारूप

इस प्रकार के शोध प्रारूप का प्रयोग ऐतिहासिक घटनाओं के अध्ययन में किया जाता है। ऐतिहासिक घटनाओं की पुनरावृत्ति और अनिश्चित होती है, इसलिए शोधकर्ता अध्ययन के लिए दो या दो से अधिक समूहों का चयन करता है और इसमें एक समूह जिसमें घटना घटित हुई होती है और दूसरा जिसमें घटना घटित नहीं हुई होती है। दोनों समूह के घटनाओं पर शोध अध्ययन कर ऐतिहासिक तथ्य परीक्षण शोध प्रारूप के माध्यम से निष्कर्ष निकाला जाता है।

निष्कर्ष – शोध प्रारूप शोध प्रक्रिया की एक प्रमुख चरण है। शोधकर्ता को शोध प्रारूप का चयन बहुत ही सावधानी पूर्वक करना चाहिए। शोधकर्ता शोध प्रारूप की सहायता से न केवल शोध के सभी चरणों को निर्विघ्न रुप से संपन्न करता है, वरन वे अपने शोध कार्य को समय सीमा के अंतर्गत पूरा भी कर सकता है।

शोध प्रारूप में निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया जाना चाहिए –

 शोध का शीर्षक

 शोध के उद्देश्य

 आंकड़े की प्रकृति, आंकड़े संग्रहण की विधि एवं उपलब्धता

 शोध अध्ययन का क्षेत्र एवं सीमाएं

 समय योजना

 निदेर्शन की विधि एवं कार्यान्वयन योजना

 आंकड़े संग्रहण की प्रक्रिया

 आंकड़े विश्लेषण की प्रक्रिया

Reference

eGyanKosh, IGNOU, Research Methodology।

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