कंप्यूटर ने मानव जीवन को एक नई दिशा दी है। सन 1946 ईस्वी में विश्व के सर्वप्रथम डिजिटल अर्थात सांख्यिकी कंप्यूटर का अविष्कार हुआ। तब से आज तक कंप्यूटर द्वारा लाए गए परिवर्तन वास्तव में अदभुत और अनोखा है।
प्रारंभ में कंप्यूटर केवल संख्याओं की गणना के काम किए जाते थे और इसका उपयोग कुछ विशिष्ट गणितज्ञ, वैज्ञानिक, इंजीनियरों तक सीमित था। परंतु अब कंप्यूटर के आकार- प्रकार, क्षमता और कीमतों में बहुत अधिक परिवर्तन आ चुका है। कंप्यूटर के सिमटते हुए आकार और बढ़ती हुई क्षमता व गिरती हुई कीमतों के कारण उसका उपयोग अत्यधिक हो गया है। वैज्ञानिक संस्थानों की अपेक्षा बैंक, बीमा, आरक्षण, निर्माण, क्रय-विक्रय आदि व्यावसायिक क्षेत्र में अधिक संख्या में कंप्यूटर के उपयोग किया जा रहा है और हमलोग इंटरनेट के माध्यम से विविध विषयों के ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं।
कंप्यूटर की प्रथम पीढ़ी (First Generation Computer) (1942-1955)
हार्वर्ड मार्क – 1 नामक कंप्यूटर को कंप्यूटर के विकास की पहली पीढ़ी मानी जाती है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ऐकेन ने आईबीएम कंपनी के वैज्ञानिकों के सहयोग से प्रथम स्वचालित कंप्यूटर बनाया गया। जिसका नाम ऑटोमेटिक सीक्वेंस कंट्रोल केलकुलेटर (ASCC) रखा गया। जिसका आकार 50 फीट लम्बा और 8 फीट ऊंचा था। प्रारंभ में 1946 ईस्वी में अमेरिकी सैन्य संस्था द्वारा यूनिवाक-प्रथम (Univac -I) नामक कंप्यूटर का प्रयोग किया गया। जिसमें बल्ब वैक्यूम ट्यूब का प्रयोग किया गया था। अमेरिकी सैन्य विभाग के सहयोग से 1946 ईस्वी में निर्मित ‘एनियाक’ (ENIAC) नामक आधुनिक कंप्यूटर सामने आया, जो एक सेकेंड में 5000 जोड़ सकता था।
इस युग में पंच कार्ड प्रक्रिया का भी आरंभ हुआ। आईबीएम की ओर से पंच कार्ड मशीन बनाई गई धीरे-धीरे कंप्यूटरों में चुंबकीय तश्तरी (Magnetic Drum) युक्त आंतरिक स्मृति को प्रयोग किया जाने लगा। इसके द्वारा पंच कार्ड से डाटा को पढ़कर कंप्यूटर के आंतरिक स्मृति (Internal Memory) में संग्रहित किया जाने लगा। इस तरह मशीनी भाषा का प्रयोग आरंभ हुआ, जो प्रोग्रामिंग भाषा का रूप माना जाता है। 1952 ईस्वी में पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ग्रेस हापर पर द्वारा असेंबली लैंग्वेज का आविष्कार किया गया, जो कंप्यूटर की प्रथम पीढ़ी की देन माना जाता है।
कंप्यूटर की द्वितीय पीढ़ी (Second Generation Computer) (1955-1964)
कंप्यूटर की द्वितीय पीढ़ी में केंद्रीय संसाधक के रूप में सेमी कंडक्टर पर आधारित ट्रांजिस्टर का उपयोग किया गया। जिसके कारण कंप्यूटर का आकार 100 गुना छोटा और यह कम मात्रा में विद्युत उपयोग होने के साथ इसकी उपयोग क्षमता में वृद्धि हुई और अनेक विशेषताएं भी शामिल हुआ। ट्रांजिस्टर के अतिरिक्त इसी क्रम में कंप्यूटर टेप और डिस्क का प्रयोग होने लगा। पंच कार्ड का प्रयोग धीरे-धीरे समाप्त होने लगा और संग्रहण की क्षमता और तीव्र गति और भंडारण की क्षमता डिस्क के प्रयोग से काफी बढ़ गई।
इस पीढ़ी में कंप्यूटर के कंपोनेंट को एक समूह के रूप में पी.सी.बी. (प्रिंटेड सर्किट बोर्ड) पर रखा गया। जिससे इसका रख – रखा अत्यंत सरल और आसान हो गया। किसी भी कॉम्पोनेंट्स के खराब होने से उस कॉम्पोनेंट बदला जा सकता था। जिसके कारण कंप्यूटर के छोटे आकार के साथ इसका निर्माण भी सरल हुआ।
इसी क्रम में कंप्यूटर में मशीनी भाषा के स्थान पर उच्च स्तरीय भाषा का प्रयोग किया गया। सामान्य अंग्रेजी के अक्षरों के प्रयोग करने से इस भाषा के द्वारा कंप्यूटरों का प्रयोग अत्यंत आसान हो गया। उच्च स्तरीय भाषा में फोर्ट्रान (Fortran) व कोबोल (COBOL) का प्रयोग विशेष रूप से किया गया। इसके अतिरिक्त अमेरिकन नेशनल स्टैंडर्ड इंस्टिट्यूट द्वारा अनेक उच्च स्तरीय भाषाओं का विकास किया गया।
इन उच्च स्तरीय भाषा के अनुप्रयोग से नवीन प्रयोग के नए-नए आयाम विकसित किए जाने लगा। आईबीएम और अमेरिकन एयरलाइंस ने इस दौरान पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम नामक सॉफ्टवेयर का विकास किया। सन 1962 ईस्वी में टेलस्टार नामक पहला सैटलाइट कम्युनिकेशन सॉफ्टवेयर बनाया गया। जिसके द्वारा डाटा स्थानांतरण संभव हो सका। इस पीढ़ी में प्रबंधन सूचना तंत्र (मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम) का भी विकास आरंभ हुआ।
तृतीय पीढ़ी के कंप्यूटर (Third Generation Computer) (1965-1975)
इस युग में कंप्यूटर में केंद्रीय संसाधन के रूप में संघटित परिपथ (इंटीग्रेटेड सर्किट- Integrated Circuit) का उपयोग किया गया। जिसके कारण इसका आकार अत्यंत छोटा और रख-रखाव सरल व आसान हो गया। संघटित परिपथ ट्रांजिस्टरों का एक प्रतिवर्द्धित जाल है, जिसे रासायनिक सामग्री द्वारा एक परिपथ के रूप में एक स्थान पर स्थापित कर दिया जाता है, एक छोटे से चिप पर लगभग 100 से ट्रांजिस्टर को स्थापित करना अब संभव हो गया। इससे परिपथ (सर्किट) को छोटी जगह में स्थापित किया गया जिससे गणना का कार्य तीव्रता से संभव हो सका। इससे कंप्यूटर की गति व विश्वसनीयता दोनों बढ़ गई।
इस पीढ़ी के कंप्यूटरों की निम्न विशेषताएं थीऑपरेटिंग सिस्टम और अत्याधुनिक प्रतियुक्त सॉफ्टवेयर इस पीढ़ी की महत्वपूर्ण विकास था, जिसके फलस्वरूप कंप्यूटर ऑपरेटर और सीपीयू के बीच सीधा संबंध स्थापित हो सका। इस युग में उच्च स्तरीय भाषा का अत्यधिक विकास हुआ जिसके फलस्वरुप कंप्यूटर के निर्माण और प्रयोग अत्यंत सरल हो गया। बेसिक (BASIC – Biginner All Purpose Symbolic Instruction Code) RPG – रिपोर्ट प्रोग्राम जनरेशन की अवधारणा का प्रचलन आरंभ हुआ जिससे कंप्यूटर की लोकप्रियता और प्रयोग में आशातीत वृद्धि हुई।
मिनी कंप्यूटरों का आरंभ इस युग की विशेषता रही है। सर्वप्रथम डिजिटल इक्विपमेंट ने POP-8 नामक मिनी कंप्यूटर बनाया गया। आईबीएम कंपनी ने इस पीढ़ी के अंतर्गत शब्द संसाधन (Word Processing) करने वाले कंप्यूटरों का निर्माण कर महत्वपूर्ण योगदान दिया।
चतुर्थ पीढ़ी के कंप्यूटर (Fourth Generation Computer) (1975-1985)
इस पीढ़ी के अंतर्गत माइक्रोप्रोसेसर कंप्यूटर का प्रारंभ हुआ। इसमें केंद्रीय संसाधन के रूप में बृहद व अति श्रेणी संघटन सर्किट का उपयोग किया गया। एक डाक टिकट का आकार के सिलिकॉन चिप्स पर हजारों लाखों ट्रांजिस्टरों को स्थापित कर कम्प्यूटर को छोटा बनाया गया।
1970 ईस्वी में MITS (Micro Instrumentation and Telemetry System) के द्वारा Altain 8800 नाम से माइक्रोप्रोसेसर पर आधारित कंप्यूटर का प्रयोग किया गया जो विश्व का प्रथम माइक्रोप्रोसेसर पर आधारित कंप्यूटर था। इस काल में बिल गेट्स के साथ मिलकर अनेक एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर का निर्माण किया गया। कुछ समय बाद बिल गेट्स ने स्वंय की अपने कंपनी माइक्रोसॉफ्ट कार्पोरेशन की स्थापना की। जो आज कंप्यूटर सॉफ्टवेयर बनाने वाली अग्रणी तथा महत्वपूर्ण कंपनियों में से एक है। सन् 1977 में स्टीव जॉव और स्टीव जोनेक नामक दो युवा इंजीनियर्स ने एप्पल कंप्यूटर ( Apple Computer) नाम की माइक्रोप्रोसेसर युक्त कंप्यूटर का निर्माण किया जो की प्रथम स्प्रेडशीट सॉफ्टवेयर के रूप के रूप में काफी लोकप्रिय हुआ। सन 1981 में आईबीएम ने आईबीएम- पी सी के रूप में अपने माइक्रो कंप्यूटर को बनाकर कंप्यूटर उत्पादन में महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की।
इस काल में कंप्यूटरों में हार्डवेयर के साथ-साथ कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का भी विकास हुआ। जिससे अनेक कंप्यूटर भाषाओं का प्रचलन बढ़ा और कंप्यूटर के क्षेत्र में क्रांतिकारी विकास को विकास हुआ।
पांचवीं पीढ़ी के कंप्यूटर (Fifth Generation Computer) (1985- )
आज हमलोग पांचवीं पीढ़ी के कंप्यूटरों के साथ कार्य कर रहे हैं। इसके अंतर्गत आईबीएम द्वारा निर्मित 80286 – 386 – 486 – 586 आदि पर्सनल कंप्यूटर की श्रृंखला ने अंतरराष्ट्रीय कंप्यूटर बाजार पर अपना अधिकार कर रखा है। सुपर कंप्यूटर तक का विकास हो चुका है। इस पीढ़ी के कंप्यूटर की कल्पना एक ऐसी मशीन के रूप में की जा रही है जिसमें कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) हो और यह मनुष्य के समान बुद्धिमता के साथ स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हो। इस कल्पना को साकार रूप प्रदान करने के लिए रोबोटिक्स तकनीक पर आधारित रोबोट बनाया जा चुके हैं, जो मानव के समान अनेक प्रकार के कार्यों को करने में सक्षम भी है। तथा जो कार्य मानव के लिए असंभव होता है किंतु उसे आवश्यक अनुदेश देने के साथ असंभव कार्य भी संभव और आसान हो जाता है। अभी इनका कृत्रिम मस्तिष्क उस प्रकार नहीं सोच सकता है जिस प्रकार मानव मस्तिष्क सोचता है और निर्णय लेता है। इसके अतिरिक्त कम्प्यूटर सॉफ्टवेयरों में मूलभूत परिवर्तन हो चुका है। कृत्रिम ज्ञान क्षमता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) वाले अनेक उपयोगी सॉफ्टवेयर विकास हुआ है और लगातार जारी है।