समाज में निरंतर बढ़ती हुई आवश्यकता एवं सुविधाओं की मांग ने नए-नए आविष्कारों को जन्म दिया है। आज शोध एवं विकास गतिविधियां एकल प्रयास ना होकर सामूहिक या संगठित प्रयास बन चुका है। सरकार ने भी शोध गतिविधियों के महत्व को समझा है और उन्हें अनुदान एवं विविध प्रकार से मदद देकर प्रोत्साहित किया जा रहा है।
मुख्यतः शोध कार्य दो स्तर पर हो रहा है – एक विश्वविद्यालय स्तर पर जिसमें विद्यार्थी शोध उपाधि जैसे एम. फिल या पी-एच.डी. के लिए शोध कार्य करता है दूसरे स्तर पर सरकार एवं निजी संस्थाएं शोध एवं विकास गतिविधियों को अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रायोजित करती है। आज प्रत्येक विकसित राष्ट्र, विकासशील राष्ट्र और अविकसित राष्ट्र अपने अपने संसाधनों और क्षमता के अनुसार शोध कार्य में लगे हुए हैं और वह प्रगति शील है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सामाजिक विज्ञान और मानविकी के क्षेत्र में हो रहे शोध कार्यों में प्रयोग की जाने वाली प्रक्रियाएं, तकनीकी भिन्न-भिन्न हो सकती है। शोध की प्रकृति के आधार पर निम्न प्रकार के शोध कार्य किया जा सकता है।
1. मौलिक शोध (Pure/Basic/Fundamental Research)
मौलिक शोध के द्वारा नवीन जान की विधि होती है इसमें अंतर्ज्ञान का प्रवाह अधिक होता है और सैद्धांतिक ज्ञान की खोज पर अधिक जोर दिया जाता है और सैद्धांतिक ज्ञान भविष्य में अनुप्रयुक्त कर नवीन ज्ञान की विधि की जा सकती है मौलिक शोध का स्वरूप बौद्धिक तथा सैद्धांतिक होता है इसमें नवीन सिद्धांतों एवं नियमों की खोज की जाती है इस प्रकार के अनुसंधान का प्राथमिक उद्देश्य सामान्य करना के द्वारा नए सिद्धांत तथा नियमों को विकसित करना होता है मौलिक शोध में शोध शोध कार्य विशुद्ध रूप से ज्ञान प्राप्ति के लिए क्या जाता है मौलिक शोध बौद्धिक प्रश्नों और जिज्ञासाओं का उत्तर खोजने का प्रयास होता है इसमें पुराने सिद्धांतों नियमों और सूत्रों की पुनर बच्चा एवं उसका सत्यापन किया जाता है यह मूलतः बौद्धिक समस्याओं के समाधान से संबंधित होता है।
2. व्यवहारिक शोध (Applied Research)
व्यवहारिक शोध अनुप्रयोग से मानव समुदाय की व्यवहारिक कठिनाइयों का हल खोजा जाता है। यह मूल रूप से प्रायोगिक समस्याओं के हल करने से संबंधित होता है। यह वर्तमान की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आ रही समस्याओं का हल खोजने की दिशा में कार्य करती है। वस्तुतः व्यवहारिक शोध व्यवहारिक होता है और इसका मुख्य उद्देश्य उपयोगितावादी होता है जो सामान्यतः व्यवहारिक समस्याओं का समाधान करता है। मौलिक शोध द्वारा जहां सिद्धांत और सूत्र खोजे जाते हैं वही व्यवहारिक शोध उन सूत्रों सिद्धांतों की सहायता से विशेष समस्या के समाधान से संबंधित होते हैं। विज्ञान के क्षेत्र में व्यवहारिक शोध के द्वारा नवीन यंत्र नई तकनीक की खोज की जाती है ताकि देश और राष्ट्र विकास की गति बना रहे। समाज की शैक्षणिक, आवासीय, तकनीकी, आर्थिक आदि समस्याओं के समाधान में व्यवहारिक शोध उपयोगी साबित हुई है।
3. क्रियात्मक शोध (Action Research)
यद्यपि क्रियात्मक शोध व्यवहारिक शोध के अंतर्गत आता है। स्थानीय एवं तत्कालिक समस्याओं के समाधान के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक विधि के उपयोग के द्वारा स्थानीय या विशेष समस्याओं का समाधान प्रदान करना होता है। सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि से संबंधित तत्कालिक समस्या का समाधान क्रियात्मक शोध के माध्यम से खोजा जा सकता है। इस प्रकार क्रियात्मक शोध का अत्यधिक महत्व है।
4. अन्तर्विषयी शोध (Interdisciplinary Research)
जब हम किसी शोध में विभिन्न विज्ञानों, सिद्धांतों एवं पद्धतियों का प्रयोग करते हैं तब उस शोध को अन्तर्विषयी शोध कहते हैं। प्रत्येक विज्ञान के अध्ययन की अलग-अलग विधियां या पद्धतियां होती हैं। उन सबका अपना – अपना दर्शन, इतिहास, स्वयं की मौलिक अवधारणाएं, शब्दावली तथा स्वयं की विषय वस्तु आदि होते हैं। अन्तर्विषयी शोध में विभिन्न विज्ञानों के विशेषज्ञ अपनी अपनी सेवाओं को इस प्रकार देते हैं ताकि उनके सिद्धांतों और विधियों में एकीकरण हो सके। उदाहरण स्वरूप जिस प्रकार किसी आर्केस्ट्रा में अलग-अलग बाद्य यंत्र काम करते हुए भी एकता स्थापित करते हैं उसी प्रकार अन्तर्विषयी शोध में वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, राजनीतिक विज्ञान वेता, भूगोल विद, दार्शनिक आदि अपने-अपने विज्ञान के अनुशासन का पालन करते हुए समन्वय स्थापित करने का प्रयास करते हैं। अन्तर्विषयी शोध की सबसे विशिष्ट विशेषता यह है कि वर्तमान सामाजिक जीवन में जटिल बने हुए मनोवैज्ञानिक एवं आर्थिक कारकों के अध्ययन तथा विवेचना को सहज बना देता है। वर्तमान परिदृश्य में अन्तर्विषयी शोध की आवश्यकता प्रत्येक क्षेत्र में स्वीकार किया जा रहा है।