Sources of Knowledge – ज्ञान प्राप्ति के साधन

Sources of Knowledge – ज्ञान प्राप्ति के साधन

Sources of Knowledge – ज्ञान प्राप्ति के साधन: ज्ञान प्राप्ति के विभिन्न साधन हैं, जिनके माध्यम से मनुष्य विभिन्न स्रोतों से जानकारी और अनुभव प्राप्त करता है। ये साधन भौतिक, मानसिक, और आध्यात्मिक सभी स्तरों पर काम करते हैं। ज्ञान प्राप्ति के कई साधन होते हैं जिनके माध्यम से व्यक्ति सत्य और सही जानकारी हासिल करता है। प्रमुख साधनों में प्रत्यक्ष (Perception), अनुमान (Inference), उपमान (Comparison), शब्द (Testimony), अर्थापत्ति (Presumption), अनुपलब्धि (Non-perception), अनुभव (Experience), आत्मज्ञान (Intuition) और श्रुति (Scriptures) शामिल हैं।

प्रत्यक्ष से ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से मिलता है, जबकि अनुमान तर्क द्वारा किसी तथ्य का निष्कर्ष निकालना है। उपमान में तुलना के आधार पर ज्ञान प्राप्त होता है। शब्द के द्वारा विश्वसनीय स्रोतों या व्यक्तियों के कथन से ज्ञान मिलता है। अर्थापत्ति और अनुपलब्धि से तर्कसंगत निष्कर्ष निकाले जाते हैं। अनुभव से व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है, और आत्मज्ञान सहज या अंतर्निहित ज्ञान है। श्रुति धार्मिक ग्रंथों से प्राप्त दैवीय ज्ञान है। ये साधन ज्ञान प्राप्ति के विभिन्न मार्ग हैं जो व्यक्ति को सही और पूर्ण ज्ञान तक पहुँचाते हैं। प्रमुख ज्ञान प्राप्ति के साधन निम्नलिखित हैं:-

1. प्रत्यक्ष (Perception)

प्रत्यक्ष ज्ञान वह है जो हमारी इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त होता है। जैसे हम आँखों से देखकर, कानों से सुनकर, त्वचा से स्पर्श करके, नाक से सूंघकर, और जीभ से स्वाद लेकर जानकारी प्राप्त करते हैं। यह सबसे मूलभूत और प्राथमिक ज्ञान का स्रोत है। जब हम किसी वस्तु को अपनी आँखों से देखते हैं, कानों से सुनते हैं, नाक से सूंघते हैं, जीभ से स्वाद लेते हैं या त्वचा से स्पर्श करते हैं, तब हमें जो जानकारी प्राप्त होती है, वह प्रत्यक्ष कहलाती है।

प्रत्यक्ष ज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण भी कहा जाता है क्योंकि यह अनुभवजन्य होता है और इसकी पुष्टि इंद्रियों द्वारा की जा सकती है। यह ज्ञान बिना किसी मध्यस्थ के होता है — अर्थात् हमें जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी अन्य साधन या व्यक्ति की आवश्यकता नहीं होती। उदाहरण के लिए, जब हम सूर्य को उगते हुए देखते हैं, तो यह ज्ञान प्रत्यक्ष होता है। इसी प्रकार जल का स्पर्श ठंडा लगता है, यह भी प्रत्यक्ष अनुभव है।

प्रत्यक्ष ज्ञान इंद्रियजन्य, तात्कालिक और स्पष्ट होता है, जो किसी माध्यम या तर्क के बिना सीधा अनुभव होता है। यही कारण है कि यह ज्ञान का सबसे विश्वसनीय और प्रारंभिक साधन माना जाता है।

2. अनुमान (Inference)

अनुमान वह ज्ञान है जो हम प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर तर्क के द्वारा प्राप्त करते हैं। जब कोई बात हमें इंद्रियों से सीधे ज्ञात नहीं होती, लेकिन किसी अन्य ज्ञात तथ्य से उसका निष्कर्ष निकाला जाता है, तो वह अनुमान कहलाता है। यह ज्ञान अप्रत्यक्ष होता है, लेकिन तर्कसंगत होता है। अनुमान में दो बातें प्रमुख होती हैं—एक ज्ञात कारण (हेतु) और एक अज्ञात परिणाम (साध्य)। ज्ञात कारण के आधार पर हम अज्ञात परिणाम की ओर बढ़ते हैं।

अनुमान एक तार्किक प्रक्रिया है जो प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर नए ज्ञान तक पहुँचने में सहायता करती है। यह ज्ञान प्राप्ति का अत्यंत उपयोगी और व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने वाला साधन है।

अनुमान से तात्पर्य है कि किसी पूर्व ज्ञान के आधार पर नए निष्कर्ष तक पहुँचना। यह निगमन और आगमन तर्कशास्त्र पर आधारित होता है। जब हम किसी घटना के पीछे छिपे कारणों का तर्क द्वारा अनुमान लगाते हैं, तो यह अनुमान कहलाता है।अनुमान तीन भागों में होता है—हेतु (कारण), दृष्टान्त (उदाहरण), और निगमन (निष्कर्ष)। यह ज्ञान विज्ञान, दर्शन और तर्कशास्त्र में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे नए निष्कर्षों की प्राप्ति संभव होती है।

उदाहरण: यदि हम देखते हैं कि आकाश में काले बादल छाए हैं, तो हम अनुमान लगा सकते हैं कि बारिश होने वाली है।

3. उपमान (Comparison)

उपमान एक ऐसा ज्ञान-साधन है जिसमें किसी अज्ञात वस्तु के बारे में जानकारी, किसी ज्ञात वस्तु से तुलना या समानता के आधार पर प्राप्त की जाती है। जब हम किसी नई या अज्ञात वस्तु को किसी पहले से ज्ञात वस्तु के साथ समानता के आधार पर समझते हैं, तब वह ज्ञान उपमान कहलाता है। इस प्रक्रिया में तीन प्रमुख तत्व होते हैं –

  1. ज्ञात वस्तु (जिसे हम पहले से जानते हैं)
  2. समानता (जिसके माध्यम से तुलना की जाती है)
  3. अज्ञात वस्तु (जिसके बारे में ज्ञान प्राप्त करना है)

उदाहरण के रूप में, यदि किसी व्यक्ति ने पहले कभी जंगली भैंसा नहीं देखा है, और उसे बताया जाए कि “गैव (जंगली भैंसा) उस जानवर जैसा होता है जैसा तुमने खेतों में देखा है, पर थोड़ा बड़ा और अधिक शक्तिशाली होता है”, तो जब वह व्यक्ति जंगल में गैव को देखेगा, तो वह पहचानेगा कि यह वही है – यह पहचान उपमान कहलाती है।

उपमान वह साधन है जिससे हम किसी अज्ञात वस्तु की पहचान या जानकारी, किसी ज्ञात वस्तु से उसकी तुलना करके प्राप्त करते हैं। यह भाषा, शिक्षण, और संप्रेषण के क्षेत्रों में अत्यंत उपयोगी होता है, क्योंकि नई चीज़ों को समझाने में यह अत्यंत सहायक होता है।

उपमान वह ज्ञान है जो किसी ज्ञात वस्तु की तुलना द्वारा किसी अज्ञात वस्तु के बारे में प्राप्त किया जाता है। इसमें समानता के आधार पर जानकारी प्राप्त की जाती है। जब कोई व्यक्ति किसी नई वस्तु या स्थिति को किसी पहले से जानी-पहचानी वस्तु से तुलना करके समझता है, तो वह उपमान कहलाता है।

उदाहरण के रूप में, यदि किसी ने पहले कभी “नील गाय” नहीं देखा, लेकिन कोई कहे कि “नील गाय वैसा ही होता है जैसा गाय”, और व्यक्ति ने गाय देखा है, तो वह गाय की जानकारी के आधार पर नील गाय की कल्पना कर सकता है।

उपमान एक ऐसा साधन है जिससे हम नई या अज्ञात वस्तु की जानकारी, किसी जानी-पहचानी वस्तु से तुलना कर के प्राप्त करते हैं। यह ज्ञान का एक सहायक और सहज तरीका है।

उपमान ज्ञान तर्कशास्त्र में उपयोगी होता है जब प्रत्यक्ष या अनुमान उपलब्ध नहीं होते, और केवल तुलना के माध्यम से ज्ञान संभव होता है। उपमान में किसी ज्ञात वस्तु के आधार पर किसी अन्य अज्ञात वस्तु की जानकारी प्राप्त की जाती है। इसमें दो चीजों के बीच समानता का उपयोग करके निष्कर्ष निकाला जाता है।

4. शब्द (Testimony/Authority)

शब्द वह ज्ञान है जो किसी विश्वसनीय व्यक्ति, ग्रंथ या प्रमाणिक स्रोत के कथन से प्राप्त होता है। जब हम किसी योग्य व्यक्ति या प्रमाणिक ग्रंथ की बात को सत्य मानकर ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो वह शब्द प्रमाण कहलाता है। यह ज्ञान प्राप्त करने का वह साधन है, जिसमें किसी विश्वसनीय स्रोत (गुरु, पुस्तक, वेद, शास्त्र, विशेषज्ञ) द्वारा दी गई जानकारी को सत्य मानकर स्वीकार किया जाता है। इसका आधार व्यक्ति के विश्वास और अनुभव पर निर्भर करता है। उदाहरणस्वरूप किसी वैज्ञानिक या ग्रंथ द्वारा दी गई जानकारी को मानना, गुरु से ज्ञान प्राप्त करना।

शब्द प्रमाण वह माध्यम है जिसमें हम योग्य, प्रमाणिक या विश्वसनीय स्रोत के कथन पर विश्वास करके ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यह ज्ञान दो प्रकार का हो सकता है – लौकिक शब्द (Secular Testimony) और अलौकिक शब्द (Spiritual or Divine Testimony)

लौकिक शब्द (Secular Testimony)

लौकिक शब्द वह ज्ञान है जो किसी सामान्य, लेकिन विश्वसनीय और योग्य व्यक्ति के कथन से प्राप्त होता है। यह ज्ञान धार्मिक या आध्यात्मिक न होकर सांसारिक (प्राकृतिक, वैज्ञानिक या सामाजिक) विषयों से संबंधित होता है। जब हम शिक्षक, वैज्ञानिक, चिकित्सक, या किसी विशेषज्ञ की बात पर विश्वास कर ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो वह लौकिक शब्द कहलाता है। लौकिक शब्द में स्रोत की प्रामाणिकता (authenticity) और योग्यता (competence) महत्वपूर्ण होती है। यदि बोलने वाला व्यक्ति ज्ञानी, ईमानदार और भरोसेमंद है, तभी उसका कथन ज्ञान का साधन बनता है।

लौकिक शब्द वह माध्यम है जिससे हम सांसारिक विषयों पर दूसरों के विश्वसनीय कथनों से ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह शिक्षा, विज्ञान, और दैनिक जीवन में अत्यंत उपयोगी होता है।

उदाहरण के लिए, जब एक छात्र अपने शिक्षक से सुनता है कि “जल 100 डिग्री सेल्सियस पर उबलता है”, तो यह लौकिक शब्द के माध्यम से प्राप्त ज्ञान है। छात्र ने प्रयोग स्वयं नहीं किया, लेकिन शिक्षक की प्रमाणिकता और ज्ञान पर भरोसा करके उस जानकारी को स्वीकार करता है।

अलौकिक शब्द (Spiritual or Divine Testimony)

अलौकिक शब्द वह ज्ञान है जो धार्मिक ग्रंथों, ऋषियों, संतों या ईश्वरप्रदत्त वाणी से प्राप्त होता है। यह ज्ञान लौकिक जगत से परे, आध्यात्मिक, दार्शनिक या ईश्वरीय विषयों से संबंधित होता है, जैसे आत्मा, परमात्मा, मोक्ष, पुनर्जन्म आदि। इस प्रकार का ज्ञान इंद्रियों से प्रत्यक्ष नहीं होता और न ही तर्क या अनुमान से पूर्णतः जाना जा सकता है, इसलिए इसे शब्द प्रमाण के रूप में मान्यता दी जाती है। वेद, उपनिषद, कुरान, बाइबिल, गुरु ग्रंथ साहिब आदि ग्रंथ अलौकिक शब्द के मुख्य स्रोत माने जाते हैं।

उदाहरण के लिए, “आत्मा अमर है” – यह ज्ञान किसी प्रत्यक्ष अनुभव से नहीं, बल्कि वेदों या भगवद्गीता जैसे ग्रंथों से प्राप्त होता है। यहाँ ग्रंथ की प्रामाणिकता, दिव्यता और ऋषियों की अनुभूति को सत्य का आधार माना जाता है।

अलौकिक शब्द वह साधन है जिससे हम आध्यात्मिक और ईश्वर से संबंधित उच्चतर ज्ञान, धर्मग्रंथों या दिव्य व्यक्तियों की वाणी के माध्यम से प्राप्त करते हैं। यह धार्मिक आस्था और दर्शन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र यह जानता है कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, लेकिन उसने यह स्वयं नहीं देखा है, तो यह ज्ञान उसे शिक्षक या पुस्तक से मिला है। इसी तरह, धार्मिक व्यक्ति ईश्वर के गुणों की जानकारी ग्रंथों या संतों के माध्यम से प्राप्त करते हैं।

5. अर्थापत्ति (Presumption)

अर्थापत्ति वह ज्ञान है जो किसी अस्पष्ट या अपूर्ण स्थिति को देखकर तार्किक रूप से आवश्यक निष्कर्ष निकालने से प्राप्त होता है। जब कोई बात प्रत्यक्ष, अनुमान या शब्द से स्पष्ट नहीं होती, लेकिन बिना उस बात को माने स्थिति का स्पष्टीकरण संभव नहीं होता, तो उसे मान लेना अर्थापत्ति कहलाता है। यह वह साधन है जिसमें किसी परिस्थिति को देखते हुए ऐसा निष्कर्ष निकाला जाता है जो सीधा स्पष्ट नहीं होता, लेकिन अन्य जानकारी के आधार पर तार्किक रूप से सही होता है। यह ज्ञान अनिवार्य धारणा पर आधारित होता है – यदि कोई बात न मानी जाए, तो ज्ञात तथ्य समझ में नहीं आते। इसलिए अर्थापत्ति को अवश्यभावी अनुमान  भी कहा जाता है।

उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति दिन भर भोजन नहीं करता और फिर भी मोटा है, तो हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि वह रात में भोजन करता होगा। हमने उसे रात में खाते हुए नहीं देखा, लेकिन बिना इस मान्यता के उसकी स्थिति समझ में नहीं आती।

अर्थापत्ति के दो प्रकार होते हैं: – द्रव्यार्थापत्ति (Material Presumption) और गुणार्थापत्ति (Attribute Presumption)

द्रव्यार्थापत्ति (Material Presumption)

द्रव्यार्थापत्ति वह प्रकार की अर्थापत्ति है जिसमें किसी वस्तु (द्रव्य) के अस्तित्व का अनुमान लगाया जाता है, ताकि कोई ज्ञात तथ्य समझ में आ सके। जब कोई जानकारी स्पष्ट नहीं होती, लेकिन किसी वस्तु को माने बिना वह जानकारी अधूरी या असंगत लगती है, तब हम उस वस्तु के होने की अनिवार्यता से उसका अनुमान लगाते हैं। यह तर्क मुख्यतः तब प्रयोग होता है जब किसी घटना के पीछे किसी द्रव्य (वस्तु/सत्ता) का होना जरूरी हो, भले ही वह प्रत्यक्ष न हो।

द्रव्यार्थापत्ति वह प्रक्रिया है जिसमें किसी ज्ञात तथ्य की व्याख्या के लिए किसी अदृश्य या अप्रकट वस्तु का अस्तित्व मान लेना आवश्यक होता है। यह अर्थापत्ति का व्यावहारिक और तार्किक रूप है।

उदाहरण: कोई व्यक्ति कहता है, “आरव मोटा होता जा रहा है, लेकिन वह दिन में कुछ नहीं खाता।” इस तथ्य को समझने के लिए हम यह मानते हैं कि आरव रात में खाता होगा। यहाँ “रात में भोजन करना” एक अज्ञात द्रव्य है, जिसे मानना आवश्यक हो जाता है। इस प्रकार, आरव के मोटे होने को समझाने के लिए रात के भोजन का होना आवश्यक है, जिसे हम द्रव्य रूप में मानते हैं, इसलिए यह द्रव्यार्थापत्ति कहलाता है।

गुणार्थापत्ति (Attribute Presumption)

गुणार्थापत्ति वह प्रकार की अर्थापत्ति है जिसमें किसी वस्तु के गुण या अवस्था का अनुमान लगाया जाता है ताकि ज्ञात तथ्य समझ में आ सकें। जब किसी वस्तु के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी न हो, लेकिन उस वस्तु के कुछ व्यवहार या प्रभाव देखकर उसके गुण या स्थिति का अनुमान लगाया जाए, तो उसे गुणार्थापत्ति कहते हैं। यह तर्क तब काम आता है जब किसी वस्तु के गुण या स्वभाव को मानना आवश्यक हो जाता है, अन्यथा ज्ञात तथ्य अस्पष्ट या असंगत लगते हैं।

गुणार्थापत्ति वह तर्क है जिसमें किसी वस्तु के गुण या स्थिति का अनुमान लगाकर अपूर्ण या अस्पष्ट तथ्य समझाए जाते हैं। यह अनुमान उस गुण को मानता है जिसे प्रत्यक्ष अनुभव से जाना नहीं जा सकता, लेकिन वह तर्कसंगत और आवश्यक होता है।

उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति कहता है, “राम दिन भर भोजन नहीं करता, फिर भी वह स्वस्थ और सक्रिय है,” तो इसका मतलब है कि राम के शरीर में ऐसा गुण (जैसे कोई विशेष सहनशीलता या शक्ति) है जो उसे बिना भोजन के जीवित रखता है। यह गुण प्रत्यक्ष नहीं है, लेकिन उसकी उपस्थिति को मानना आवश्यक होता है।

अर्थापत्ति वह ज्ञान है जो अपूर्ण तथ्यों को समझाने के लिए आवश्यक रूप से किसी अज्ञात तथ्य को मानकर प्राप्त होता है। यह तर्कशास्त्र का एक महत्वपूर्ण साधन है जो तर्क और अनिवार्यता के आधार पर काम करता है।

6. अनुपलब्धि (Non-perception or Absence)

अनुपलब्धि ज्ञान वह है जो किसी वस्तु, गुण या घटना की अनुपस्थिति से प्राप्त होता है। जब किसी स्थान या समय पर किसी वस्तु या गुण का होना अपेक्षित हो, लेकिन वह वहाँ न मिले, तो उसकी अनुपस्थिति से ज्ञान प्राप्त होता है। यह ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव से न होने के आधार पर होता है, लेकिन इसके द्वारा हम किसी वस्तु के न होने का निष्कर्ष निकाल सकते हैं। अनुपलब्धि ज्ञान नकारात्मक प्रमाण के रूप में भी काम करता है।

अनुपलब्धि से तात्पर्य है कि किसी वस्तु या घटना की अनुपस्थिति से उसके बारे में निष्कर्ष निकालना। जब कुछ नहीं दिखता या होता है, तो हम उसकी अनुपस्थिति से कोई निष्कर्ष निकालते हैं। अनुपलब्धि ज्ञान जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हम किसी वस्तु या स्थिति के न होने को समझ पाते हैं और उसकी अनुपस्थिति के आधार पर निर्णय लेते हैं।

अनुपलब्धि वह ज्ञान है जो किसी वस्तु या घटना के न होने से प्राप्त होता है। यह नकारात्मक प्रमाण की तरह काम करता है और तर्कशास्त्र में इसका विशेष महत्व है।

उदाहरण:
यदि कमरे में कोई कुर्सी नहीं है, तो हम कहते हैं कि वहाँ कुर्सी अनुपस्थित है। हम कुर्सी को देखने की कोशिश करते हैं, लेकिन नहीं पाते, तो यह अनुपलब्धि से ज्ञान है।

7. अनुभव (Experience)

अनुभव वह ज्ञान है जो व्यक्ति अपने प्रत्यक्ष जीवन में विभिन्न घटनाओं, क्रियाओं और परिस्थितियों से प्राप्त करता है। यह व्यक्तिगत या सामूहिक दोनों हो सकता है। अनुभव के माध्यम से व्यक्ति अपने प्रयासों, पर्यवेक्षण और अनुभवों से सीखता है और ज्ञान अर्जित करता है।

अनुभव ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत है क्योंकि यह केवल सिद्धांतों पर निर्भर नहीं रहता, बल्कि वास्तविक जीवन में परीक्षण और अभ्यास से प्राप्त होता है। वैज्ञानिक अनुसंधान भी अनुभव आधारित होता है, जहाँ प्रयोग और निरीक्षण से तथ्य ज्ञात किए जाते हैं। अनुभव से ज्ञान प्राप्ति वह प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन में किए गए अनुभवों से सीखता है। यह व्यक्तिगत ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, क्योंकि इसमें व्यक्ति अपने अनुभवों और सोच के आधार पर निष्कर्ष निकालता है।

अनुभव वह ज्ञान है जो व्यक्ति अपनी क्रियाओं, पर्यवेक्षण और वास्तविक जीवन की परिस्थितियों से प्राप्त करता है। यह ज्ञान व्यवहारिक, प्रयोगात्मक और अत्यंत विश्वसनीय होता है।

उदाहरण: यदि किसी ने बार-बार आग को छुआ है और महसूस किया है कि वह जलता है, तो यह अनुभव उसके ज्ञान का हिस्सा होगा। इसी प्रकार, जब कोई व्यक्ति वाहन चलाने का अभ्यास करता है, तो वह अनुभव से सीखता है।

8. आत्मज्ञान (Intuition)

आत्मज्ञान वह ज्ञान है जो व्यक्ति को बिना किसी बाहरी साधन, अनुभव या तर्क के सीधे अपने अंदर से प्राप्त होता है। इसे अंतर्ज्ञान भी कहा जाता है। यह ज्ञान सहज, त्वरित और बिना विचार-विमर्श के अचानक प्राप्त हो जाता है। आत्मज्ञान का आधार व्यक्ति की अंतर्निहित बुद्धि या चेतना होती है, जो किसी समस्या का समाधान या सत्य का बोध बिना विश्लेषण के कर लेती है। यह ज्ञान व्यक्ति की अंतर्मन की गहराइयों से आता है और अक्सर इसे गूढ़, रहस्यमय या आध्यात्मिक अनुभव माना जाता है।आत्मज्ञान या अंतर्ज्ञान वह साधन है जिसके द्वारा व्यक्ति बिना किसी बाहरी अनुभव या तर्क के सीधे ज्ञान प्राप्त करता है। इसे व्यक्ति का आंतरिक ज्ञान या अंतर्दृष्टि भी कहा जा सकता है।

आत्मज्ञान वह ज्ञान है जो तर्क और अनुभव से स्वतंत्र होकर व्यक्ति के अंतर्मन से सीधे प्राप्त होता है। यह सहज और मौलिक होता है, जो जीवन के अनेक निर्णयों में मदद करता है।

उदाहरण: जब किसी व्यक्ति को बिना किसी सबूत या तर्क के यह अनुभव होता है कि कोई निर्णय सही होगा, या किसी बात का सच है, तो वह आत्मज्ञान कहलाता है। जैसे अचानक कोई समस्या का समाधान मन में आ जाना।

9. श्रुति (Scriptures/Divine Revelation)

श्रुति ज्ञान वह है जो धार्मिक या दैवीय ग्रंथों से प्राप्त होता है। इसे दिव्य वाणी या ईश्वरीय उद्घोष भी कहा जाता है। यह ज्ञान मनुष्यों द्वारा अनुभव या तर्क से प्राप्त नहीं होता, बल्कि इसे सीधे ईश्वर या ऋषियों द्वारा प्रकट माना जाता है। भारतीय दर्शन में वेद, उपनिषद, भगवद्गीता आदि को श्रुति ग्रंथ माना गया है, जिनमें परम सत्य और ज्ञान का संग्रह होता है। श्रुति ज्ञान आध्यात्मिक, धार्मिक और नैतिक जीवन के लिए मार्गदर्शन करता है। कुछ परंपराओं में ज्ञान प्राप्ति का एक स्रोत ईश्वर या देवताओं से प्राप्त ज्ञान माना जाता है। इसे धार्मिक ग्रंथों, वेदों, या अन्य धार्मिक अनुभवों से प्राप्त किया जाता है।

श्रुति वह ज्ञान है जो दैवीय या धार्मिक ग्रंथों से प्राप्त होता है। यह आध्यात्मिक सत्य को प्रकट करता है और मानव जीवन के उच्चतर उद्देश्यों को समझने में सहायता करता है।

उदाहरण: वेदों, बाइबिल, कुरान आदि में प्राप्त ज्ञान को मानना। वेदों में वर्णित कर्म, धर्म, मोक्ष आदि के सिद्धांत श्रुति ज्ञान के अंतर्गत आते हैं। यह ज्ञान सैकड़ों या हजारों वर्षों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है।

ज्ञान प्राप्ति के ये साधन व्यक्ति को विभिन्न स्तरों पर जानकारी और समझ प्राप्त करने में मदद करते हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द, और अनुभव जैसे साधन वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण के आधार पर काम करते हैं, जबकि आत्मज्ञान और श्रुति जैसे साधन आध्यात्मिक और धार्मिक स्तर पर आधारित होते हैं।

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