General Rules of Syllogism: न्याय अर्थात सिलॉजिज्म के इस दस सामान्य नियम को जानना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य होता है क्योंकि इन्हीं नियमों के आधार पर ही सिलॉजिज्म अर्थात न्याय की वैद्यता सिद्ध की जाती है। इसलिए यह आलेख विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेने वाले विद्यार्थियों के लिए लाभकारी होगा। अतः इसे अच्छी तरह से समझने की कोशिश एवं आत्मसात करेंगे। ताकि सिलॉजिज्म जुड़े प्रश्नों का हल आसानी से कर सकें।
न्याय के नियम एवं उनके दोष
नियम 1. प्रत्येक न्याय युक्ति में केवल तीन आधार वाक्य होते हैं – वृहद आधार वाक्य, लघु आधार वाक्य एवं निष्कर्ष।
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नियम 2. प्रत्येक न्याय में केवल तीन पद का प्रयोग होना चाहिए (वृहद पद, लघु पद और मध्यवर्ती पद) तथा प्रत्येक पद का व्यवहार केवल एक अर्थ में होना चाहिए।
- प्रत्येक पद न्याय युक्ति में दो बार प्रयुक्त होता है। यदि न्याय युक्ति में इस नियम का पालन नहीं होता है तो उसमें चतुष्पदी दोष या अनेकार्थक दोष उत्पन्न होता है।
- चतुष्पदी दोष (Fallacy of Four Terms)
जब किसी न्याय युक्ति में तीन से अधिक पदों का प्रयोग किया जाता है तो उसे चतुष्पदी दोष कहते हैं। - अनेकार्थक दोष (Fallacy of Ambiguous)
जब किसी न्याय युक्ति में तीनों पदों (वृहद पद, लघु पद और मध्यवर्ती पद) में से किसी भी पद का प्रयोग एक से अधिक अर्थों में किया जाता है तो वहां अनेकार्थक दोष होता है।अनेकार्थक दोष तीन प्रकार के होते हैं।- अनेकार्थक साध्य दोष (Fallacy of Ambiguous Major) – जब न्याय युक्ति में वृहद पद का प्रयोग एक से अधिक अर्थों में प्रयुक्त होता है।
- अनेकार्थक पक्ष दोष (Fallacy of Ambiguous Minor) – जब न्याय युक्ति में लघु पद का प्रयोग एक से अधिक अर्थों में प्रयुक्त होता है।
- अनेकार्थक मध्यवर्ती पद दोष (Fallacy of Ambiguous Middle Term) – जब न्याय युक्ति में मध्यवर्ती पद का प्रयोग एक से अधिक अर्थों में प्रयुक्त होता है।
नियम 3. न्याय युक्ति के किसी भी आधार वाक्य (वृहद वाक्य या लघु वाक्य) में मध्यवर्ती पद को कम से कम एक बार अवश्य व्याप्त होना चाहिए।
- इस नियम के उल्लंघन होने से अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष होता है।
- अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष (Fallacy of Undisturbed Middle Term) – जब किसी न्याय युक्ति के मध्यवर्ती पद दोनों आधार वाक्यों (वृहद वाक्य या लघु वाक्य) में एक बार भी व्याप्त नहीं होता है अर्थात् वह अव्याप्त रह जाता है तो अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष होता है।
नियम 4. न्याय युक्ति में जो पद (वृहद पद या लघु पद) आधार वाक्यों में अव्याप्त होता है तो उसे निष्कर्ष में व्याप्त नहीं होना चाहिए।
- यदि आधार वाक्यों में लघु पद या वृहद पद अव्याप्त रहने पर निष्कर्ष में व्याप्त होता है, तो न्याय में अनुचित प्रक्रिया का दोष उत्पन्न होता है। यह दो प्रकार के होते हैं।
- अनुचित वृहद पद का दोष (Fallacy of illicit Major Term)
यदि वृहद पद, वृहद आधार वाक्य में अव्याप्त रहने पर, निष्कर्ष में वृहद पद व्याप्त होता है, तो न्याय में अनुचित वृहद पद का दोष होता है। - अनुचित लघु पद का दोष (Fallacy of Illicit Minor Term)
यदि लघु पद, लघु आधार वाक्य में अव्याप्त हो लेकिन निष्कर्ष में लघु पद व्याप्त होता है तो न्याय में अनुचित लघु पद का दोष होता है।
नियम 5. यदि दोनों आधार वाक्य अभावात्मक हो, तो कोई भी निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।
- यदि न्याय युक्ति में दोनों आधार वाक्य अभावात्मक होता है और उससे निष्कर्ष निकाला गया हो तो वह निष्कर्ष गलत होगा।
नियम 6. यदि किसी न्याय युक्ति में एक आधार वाक्य अभावात्मक हो तो निष्कर्ष भी अभावात्मक होना चाहिए।
- इस नियम का विपरीत (Vice-Versa) भी सत्य होता है। अर्थात यदि निष्कर्ष अभावात्मक हो तो कम से कम न्याय युक्ति में एक आधार वाक्य अवश्य अभावात्मक होगा।
नियम 7. यदि दोनों आधार वाक्य भावात्मक हो तो निष्कर्ष भी भावात्मक होना चाहिए।
- इस नियम का विपरीत (Vice-Versa) भी सत्य होता है। अर्थात यदि निष्कर्ष भावात्मक हो तो दोनों आधार वाक्य अवश्य भावात्मक होगा।
नियम 8. यदि किसी न्याय युक्ति में एक आधार वाक्य अंशव्यापी हो तो निष्कर्ष भी अंशव्यापी होना चाहिए।
- लेकिन इस नियम के विपरीत सत्य नहीं होता है। अर्थात
- यदि निष्कर्ष अंशव्यापी है, एक आधार वाक्य अंशव्यापी होना आवश्यक नहीं है।
- दोनों आधार वाक्य के पूर्णव्यापी रहने पर भी निष्कर्ष अंशव्यापी भी हो सकता है।
- क्योंकि पूर्णव्यापी वाक्य का अर्थ अधिक व्यापक और अंशव्यापी का अर्थ कम व्यापक होता है।
- निगमन में दो पूर्णव्यापी (अधिक व्यापक वाक्य) से अंशव्यापी (कम व्यापक वाक्य) निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
- अर्थात दोनों पूर्णव्यापी रहने पर निष्कर्ष या तो पूर्णव्यापी होगा या अंशव्यापी भी हो सकता है। (निगमन की नियम के लिए जरूर पढ़ें)
नियम 9. यदि दोनों आधार वाक्य अंशव्यापी हो, तो कोई भी निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।
- यदि न्याय युक्ति में दोनों आधार वाक्य अंशव्यापी होता है और उससे निष्कर्ष निकाला गया हो तो वह निष्कर्ष गलत होगा। इस नियम से यह पता चलता है कि न्याय युक्ति में कम से कम एक आधार वाक्य अवश्य पूर्णव्यापी होना चाहिए।
नियम 10. यदि वृहद आधार वाक्य अंशव्यापी और लघु आधार वाक्य अभावात्मक हो तो कोई भी निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।
- यदि न्याय युक्ति में वृहद आधार वाक्य अंशव्यापी और लघु आधार वाक्य अभावात्मक होता है और उससे निष्कर्ष निकाला गया हो तो वह निष्कर्ष गलत होगा।
FAQ
चतुष्पदी दोष क्या है?
चतुष्पदी दोष (Fallacy of Four Terms): जब किसी न्याय युक्ति में तीन से अधिक पदों का प्रयोग किया जाता है तो उसे चतुष्पदी दोष कहते हैं।
अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष क्या है?
अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष (Fallacy of Undisturbed Middle Term): जब किसी न्याय युक्ति के मध्यवर्ती पद दोनों आधार वाक्यों (वृहद वाक्य या लघु वाक्य) में एक बार भी व्याप्त नहीं होता है अर्थात् वह अव्याप्त रह जाता है तो अव्याप्त मध्यवर्ती पद का दोष होता है।
अनेकार्थक दोष क्या है?
अनेकार्थक दोष (Fallacy of Ambiguous): जब किसी न्याय युक्ति में तीनों पदों (वृहद पद, लघु पद और मध्यवर्ती पद) में से किसी भी पद का प्रयोग एक से अधिक अर्थों में किया जाता है तो वहां अनेकार्थक दोष होता है।
अनुचित वृहद पद का दोष क्या है?
अनुचित वृहद पद का दोष (Fallacy of illicit Major Term) : यदि वृहद पद, वृहद आधार वाक्य में अव्याप्त रहने पर, निष्कर्ष में वृहद पद व्याप्त होता है, तो न्याय में अनुचित वृहद पद का दोष होता है।
अनुचित लघु पद का दोष क्या है?
अनुचित लघु पद का दोष (Fallacy of Illicit Minor Term) : यदि लघु पद, लघु आधार वाक्य में अव्याप्त हो लेकिन निष्कर्ष में लघु पद व्याप्त होता है तो न्याय में अनुचित लघु पद का दोष होता है।
न्याय के सामान्य नियमों को जानने की आवश्यकता क्यों ?
न्याय के सामान्य नियमों को जानने की आवश्यकता क्यों ? यदि आप न्याय के सामान्य नियमों को आत्मसात करते हैं तो सिलॉजिज्म से जुड़े सवाल का हल आप आसानी से कर सकेंगे।