शोध अध्ययन के लिए कई प्रविधियां या तकनीकें प्रचलित हैं, जिनमें ऐतिहासिक शोध पद्धति, वर्णनात्मक शोध पद्धति, प्रयोगात्मक शोध पद्धति, सर्वेक्षण शोध पद्धति एवं एकल अध्ययन पद्धति आदि अधिक महत्वपूर्ण है। जब कोई शोध प्रारूप (शोध डिज़ाइन) बनाया जाता है तो उसे समय किसी न किसी शोध पद्धति का चुनाव करना होता है क्योंकि किसी भी शोध समस्या को स्पष्ट करने के लिए शोध प्रविधि या पद्धति को अपनाना आवश्यक होता है।
ऐतिहासिक शोध पद्धति क्या है? (What is historical research method?)
ऐतिहासिक शोध पद्धति के माध्यम से अतीत की घटनाओं, विकास और अनुभव की आलोचनात्मक जांच की जाती है, जिसमें साक्ष्यों की जानकारी, स्रोतों की वैधता के साथ सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाता है। ऐतिहासिक शोध में अतीत का अध्ययन ऐतिहासिक दृष्टिकोण से किया जाता है जो प्राचीन तथ्य, परम्पराएँ एवं विचारधाराएँ वर्तमान परिस्थिति में भी विद्यमान होती हैं। ऐतिहासिक समस्याओं की जांच के लिए इस पद्धति का अनुप्रयोग किया जाता है। जिसमें समस्या की पहचान, परिकल्पना का निर्माण, डेटा का संग्रह, डेटा का सत्यापन और विश्लेषण के साथ ऐतिहासिक विवरण का परीक्षण शामिल होता है। इन सभी चरणों में ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में अतीत का अध्ययन कर नयी समझ विकसित करते हुए वर्तमान और भविष्य में इसकी प्रासंगिकता और उपयोगिता निर्धारित करना होता है।
ऐतिहासिक शोध के उद्देश्य (Objective of Historical Research)
ऐतिहासिक शोध पद्धति में अतीत के आधार पर वर्तमान की प्रासंगिकता का पता लगाना है, जिसका उद्देश्य अतीत की घटनाओं, तथ्यों और दृष्टिकोणों की खोज करके अभी तक अनसुलझी सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए चिंतन और विश्लेषण प्रस्तुत करना है।
- अतीत के अध्ययन से तत्कालीन कानूनी व्यवस्था, नीतियों निर्धारित करना एवं आदर्शों को जानने के साथ-साथ वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता का पता लगाना।
- इतिहास के आधार पर वर्तमान शिक्षण संस्थान के कार्मिक, कानूनी व्यवस्था आदि के बारे में जानना तथा उसका पुनर्मूल्यांकन कर वर्तमान समय में उसकी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता निर्धारित करना।
- इसमें शोधकर्ता को न केवल ऐतिहासिक घटनाओं की सूची तैयार करना या तथ्यों को प्रमाणित करना होता है, बल्कि डेटा विश्लेषण के आधार पर प्राप्त निष्कर्षों का सामान्यीकरण भी करना होता है। अतः ऐतिहासिक शोध से हमारा उद्देश्य ऐसे सिद्धांतों एवं उपायों की खोज करना है, जिससे वर्तमान में मानव समुदाय को लाभ हो सके।
ऐतिहासिक शोध पद्धति के महत्त्व एवं उपयोगिता (Importance and Utility of Historical Research)
शोध में ऐतिहासिक शोध पद्धति का अत्यधिक महत्व है, क्योकि यह अतीत से सम्बंधित होता है और हमारी सामाजिक क्रियाएँ कहीं न कहीं अतीत से प्रभावित होती है। इसके द्वारा सामाजिक क्रियाओं के आधार पर मानवीय विचारधारा में विकास की रेखा एवं गति का पता लगाया जाता है। ऐतिहासिक शोध में इतिहासकार या शोधकर्ता इतिहास के अतीत के तथ्यों और अभिलेखों का विश्लेषण करते हुए आलोचनात्मक मूल्यांकन कर वर्त्तमान परिपेक्ष में उसकी प्रासंगिकता एवं उपयोगिता निर्धारित करता है। प्रत्येक समाज में उसके अतीत का अध्ययन महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है, क्योकि हमारे समाज में परंपराओं, रीति-रिवाजों तथा उसके विकास का अत्यधिक महत्व है। किसी भी सामाजिक प्रभाव तथा उसके नियमों का सही प्रकार से निर्धारित करने के लिए ऐतिहासिक पद्धति ही उपयुक्त एवं सर्वमान्य होती है। ऐतिहासिक शोध पद्धति अतितोन्मुखी होती है, जिसका उद्देश्य अतीत के आधार पर वर्तमान स्थिति के बारे में सच्चाई और तथ्य प्रस्तुत करना है, क्योंकि वर्तमान को प्रभावित करने वाली सामाजिक समस्या को समझने के लिए अतीत के बारे में जानना आवश्यक है।
ऐतिहासिक शोध के लिए उपयुक्त स्रोत क्या है? (What is an appropriate source for historical research?)
ऐतिहासिक शोध पद्धति वह तकनीक और दिशानिर्देश है जिनका उपयोग इतिहासकार या शोधकर्ता अतीत के इतिहास पर शोध करने के लिए किया करते हैं। इसमें शोधकर्ता के द्वारा प्राथमिक स्रोत और माध्यमिक स्रोत के साथ पुरातत्व से प्राप्त भौतिक साक्ष्य का सहारा लिया जाता है। ऐतिहासिक शोध में शोध समस्या से सम्बंधित तथ्यों का संकलन हेतु प्राथमिक और द्वितीयक स्रोत का उपयोग किया जाता है. किन्तु ऐतिहासिक घटनाओं या तथ्यों के आधारभूत स्रोत प्राथमिक स्रोत को माना जाता है जो मानवीय अवशेष का प्रत्यक्ष साक्षी होता है. ऐतिहासिक शोध के लिए इतिहासकार या शोधकर्ता द्वितीयक स्रोतों की अपेक्षा प्राथमिक स्रोतों से सम्बंधित तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना अधिक महत्वपूर्ण समझते है, किन्तु द्वितीयक स्रोत को पूर्ण रूप से नकार नहीं सकते है. क्योंकि द्वितीयक स्रोत, प्राथमिक स्रोत का मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है.
प्राथमिक स्रोत सूचना के वे स्रोत होते हैं जिसमें सूचना सर्वप्रथम प्रकाशित होती है. प्राथमिक स्रोत में मूल विषय विवरण के साथ वर्णन एवं व्याख्या की जाती है, जो मौलिक एवं नवीन, विश्वसनीय होते हैं. प्राथमिक सन्दर्भ स्रोत सम्बंधित समस्या या विषय पर मौलिक एवं नवीन सूचना प्रदान करते हैं. सूचना के स्रोत के रूप में प्राथमिक स्रोत बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि संबंधित शोध विषय या समस्या का समाधान तभी समृद्ध एवं सत्यापनीय होता है, जब उसे क्षेत्र में मौलिक स्रोत पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं. समाचार पत्र, शोध पत्रिकाएं, शोध प्रतिवेदन, सम्मेलन कार्यवाही, शोध प्रबंध, व्यक्तिगत डायरी, पुस्तकें आदि प्राथमिक स्रोत के रूप में प्रयुक्त होता है.
द्वितीयक स्रोत सूचना वे स्रोत होते हैं जिसमें मौलिक स्रोतों अर्थात प्राथमिक स्रोतों में दी गई जानकारी या सूचना के आधार पर योजना पद तरीके से तैयार किया जाता है. यह मौलिक स्रोतों का संदर्भ प्रस्तुत करते हैं. द्वितीयक स्रोतों में सूचना संक्षिप्त एवं संगठित होती है. मौलिक स्रोतों से प्रत्यक्ष रूप से सूचना सामग्री का प्राप्त करना सरल नहीं होता है. अतः द्वितीयक स्रोतों के अवलोकन से मौलिक स्त्रोत का उपयोग करने का एक मार्गदर्शन मिलता है. इसलिए द्वितीयक स्रोत भी सूचना के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. सारांश पत्रिका, इनसाइक्लोपीडिया, अनुक्रमणिका आदि द्वितीयक स्रोत के उदहारण है.
ऐतिहासिक शोध पद्धति की सीमाएं (Limitations of Historical Research Method)
इस पद्धति के माध्यम से जिन समस्याओं का ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन किया जाना है, वह व्याख्या योग्य होनी चाहिए तथा उस पर शोध करना संभव होना चाहिए। ऐतिहासिक शोध व्यापक होने के बजाय सीमित विषय पर होना चाहिए। साथ ही साथ ऐतिहासिक शोध में प्राप्त तथ्य या जानकारी प्रामाणिकता पर आधारित होनी चाहिए।